Wednesday, November 14, 2007

वन विनाश के दुष्प्रभाव

वन न केवल भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं परन्तु सरे संसार के लिये अति आवश्यक हैं । आदि मानव सभ्यता के प्रारम्भ से ही वनों के निकट निवास करता था । वनों का आज भी उतना ही महत्व है जितना कि पहले था, बल्कि आज उनका महत्व अधिक है क्योंकि वन विनाश की प्रक्रिया अब बहुत तेज़ी से आरम्भ हो गयी है।

वन विनाश का मुख्य कारण वर्तमान सभ्यता है। हमारी सभ्यता उपभोग प्रधान है। बढ़ती आबादी की आवश्यकताएँ भी बढ़ रही हैं। खेती के लिये अधिक भुमि चाहिये, रहने के लिये अधिक स्थान चाहिये, जलाने के लिये लकड़ी, कागज़ की लुगदी, औद्योगिक आवश्यकताओं की पूर्ति आदि । सभी का एक ही जवाब-पेड़ काटे जाएँ अर्थात वन विनाश ।

वन विनाश के कारणों से हट कर यदि हम इसके दुष्परिणामों के बारे में सोचें तो हमें बहुत चिन्तित होना पड़ेगा । इसका सबसे बड़ा कुप्रभाव हमारे सामने वायु-प्रदूषण के रूप में है। जहाँ पेड़ों का अभाव है वहाँ वायु प्रदूषित है। और वायु प्रदूषण की समस्या शहरों में सबसे ज़्यादा है। यहाँ लोगों को कई रोग हैं जिनमें श्वास के रोग से लोग सबसे अधिक पीड़ित हैं ।

वन विनाश से वन्य प्रजातियों को भी बहुत नुकसान पहुँच रहा है और बहुत सी प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा बहुत सी लुप्त होने की कगार पर हैं। वनों का सफाया होने से भूमि की ऊपर की उपजाऊ मिट्टी वर्षा के जल से बहकर उन स्थानों पर चली जाती है जहाँ उसका उपयोग नहीं । वनों का क्षेत्र कम होने से वर्षा भी अनियमित होती जा रही है । इस सबसे 'ग्लोबल-वार्मिंग' होने लगी है। इसका सीधा कुप्रभाव मानवों पर पड़ेगा ।

वन विनाश की हानियों को देखते हुए हमें वन क्षेत्र को बढ़ाने के लिये व बचे वनों के संगरक्षण के लिये तुरन्त कदम उठाने चाहियें ।